भोपाल / ईद जैसा था हमारा क्रिसमस; ये कहानी है- समुदाय और संस्कृतियों के आपस में घुलमिल जाने की
भोपाल. बेगमों की रियासत भोपाल में एक क्रिश्चन परिवार भी रहता था, बॉरबॉन फैमिली। इसी परिवार की सदस्य और 'बॉरबॉन एंड बेगम्स ऑफ भोपाल' की लेखिका इंदिरा अयंगर ने दैनिकभास्कर से साझा कीअपनी मां (मैंडलिन बॉरबॉन) की जबानी सुने क्रिसमस के किस्से।
इंदिरा कहती हैं- उस समय की क्रिसमस बिलकुल ईद जैसी थी। हम ईसाई परिवार थे जरूर, लेकिन हमें देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि हम मुस्लिम नहीं थे। चाल-ढाल, ज़बान, पहनावे और रीति-रिवाजों में कोई अंतर नहीं, सिर्फ एक अंतर था कि हमारे परिवार के लोग प्रेयर के लिए चर्च जाते थे और मुस्लिम परिवार के लोग मस्जिद। मेरी मां मैंडलिन बॉरबॉन, मुस्लिम महिलाओं की तरह पर्दा करती थीं और भोपाली लिबास पहनती थीं। उनकी शादी भी फ्रेंच फैमिली में हुई और जब वे शादी के लिए चर्च में आईं, केवल तभी उनका पर्दा उठा।
जबकि, ईसाई धर्म में पर्दे का कोई रिवाज नहीं है, लेकिन जहांगीराबाद के उस बड़े चर्च में उस वक्त एक तरफ पुरुष खड़े होते थे और दूसरी तरफ महिलाएं, बीच में पर्दा हुआ करता था, ताकि किसी की नजर महिलाओंपर न पड़े। ईसाईयों में हाथ मिलाकर स्वागत करने का चलन है, लेकिन हमारे परिवार की महिलाएं हाथ नहीं मिलाती थीं, बल्कि आदाब करती थीं। हमारी क्रिसमस भी बिलकुल ईद की तरह होती थी, वैसे ही लोगों के घरों में मिठाइयां भेजना, मिलने जाना, सिर्फ सेवईयों की जगह हम मालपुए बनाते थे। केक का प्रचलन न तब था, न अब है। गुजिए, कलकल बनाकर बांटते हैं।
क्रिसमस पर फ्रांस में अमूमन डांस पार्टीज होती हैं, लेकिन यहां तो पर्दा था, तो यहां कभी कोई डांस पार्टी नहीं हुई। धीरे-धीरे समय के साथ यह रिवाज बदले और अब तो हम न पूरे मुस्लिम हैं और न ही पूरे क्रिश्चन। साउथ इंडियंस अपने ढंग से क्रिसमस मनाते हैं और हम अपने ही अलग ढंग से क्रिसमस सेलिब्रेट करते हैं।
हुक्का गुड़गुड़ाती दुल्हन साहिब
हुक्का गुड़गुड़ाती दुल्हन साहिब (इंदिरा की ग्रेट ग्रैंडमदर) की पेंटिंग। इन्हें बेगमों ने रहने के लिए एक महल दिया था- दुल्हन साहब महल। इंदिरा बताती हैं- हमारी मां कुछ समय ग्वालियर में भी रही हैं। वहां ब्रिटिश फौजी बहुत थे, तो जीसस क्राइस्ट के जन्म पर ठीक 12 बजे दो तोपें दागी जाती थीं, जो क्रिसमस सेलिब्रेशन के हिसाब से थोड़ा अलग था।


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