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18 अगस्त को मनाया जाता है शुभाष चंद्र बोस की पुण्य तिथि 18 अगस्त 1945 को अचानक गायब हुए थे सुभाषचंद्र बोस



18 अगस्त को मनाया जाता है शुभाष चंद्र बोस की पुण्य तिथि

18 अगस्त 1945 को अचानक गायब हुए थे सुभाषचंद्र बोस

लेकिन कुछ तथ्य अलग ही इशारा करते है 

क्यों सुभाष चंद्र बोस की मौत का दावा आधुनिक भारत के सबसे बड़े रहस्यों में से एक है

फैजाबाद शहर के सिविल लाइन्स इलाके में स्थित ‘राम भवन’ के बारे में 16 सितंबर 1985 से पहले न के बराबर लोग ही जानते थे. उस मकान में लंबे समय से साधु जैसे लगने वाले एक बुजुर्ग रहते थे जिनके बारे में स्थानीय निवासियों को कुछ खास जानकारी नहीं थी. जिस दिन उनकी मृत्यु हुई और अंतिम संस्कार के बाद उनके कमरे को खंगाला गया तो कई लोगों की आंखें खुली-की-खुली रह गईं. उनके कमरे से लोगों को कई ऐसी चीजें मिलीं जिनका ताल्लुक सीधे तौर पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ता था. इनमें नेताजी की पारिवारिक तस्वीरों से लेकर आजाद हिंद फौज की वर्दी, जर्मन, जापानी तथा अंग्रेजी साहित्य की कई किताबें और नेताजी की मौत से जुड़े समाचार पत्रों की कतरनें शामिल थीं. इसके अलावा वहां से और भी कई ऐसे दस्तावेज बरामद हुए जिनके आधार पर एक बड़े वर्ग ने दावा किया कि वे कोई आम बुजुर्ग नहीं बल्कि खुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे.

इस दावे को सही साबित नहीं किया जा सका बल्कि इसने नेताजी की गुमनामी की गुत्थी को एक बार फिर से कुछ और उलझा दिया. इससे पहले बहुत से लोग एक विमान हादसे को उनकी मृत्यु का कारण मानते थे तो कइयों को लगता था कि वे किसी बड़ी राजनीतिक साजिश का शिकार हुए हैं. कुल मिलाकर नेताजी को लेकर अब तक अलग-अलग तरह की इतनी सारी बातें सामने आ चुकी हैं, लेकिन उनके गायब होने का रहस्य आज भी जस का तस बना हुआ है.

कांग्रेस के अध्य्क्ष रहे शुभाषचंद्र बोस
जबलपुर के तिलवाराघाट त्रिपुरी में 29 जनवरी 1939 को आयोजित कांग्रेस के 52 वें अधिवेशन में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था।
जबलपुर। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता और महान क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस 18 अगस्त 1945 को रहस्मय परिस्थतियों में ताइवान के ताइपेई से अचानक गायब हो गए थे। कहा गया कि  एक विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया। जिसके बाद वे अभी तक सार्वजनिक तौर पर नजर नहीं आए। जबलपुर से नेताजी का गहरा नाता रहा है। यहां 29 जनवरी 1939 को तिलवाराघाट त्रिपुरी में आयोजित कांग्रेस के 52 वें अधिवेशन में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा समर्थित प्रत्याशी पट्टाभिसीता रमैया को 203 वोटों के अंतर से करारी शिकस्त दी थी। 


शुभाष चॉन्द्रो बोशु, जन्म: 23 जनवरी 1897, मृत्यु: 18 अगस्त 1945) जो नेता जी के नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था[1]। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा, बन गया है। "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया ।
भारत बर्ष के महान नेताओ में से एक नेता शुभाष चंद्र बॉस

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