समाप्त हुआ एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट ने कहा सरकारें आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम फैसले ने अचानक से देश के सियासी पारे को उपर चढ़ा दिया है. हर तरफ इस फैसले को संविधान की मूल आत्मा के विरुद्ध और देश में सामाजिक न्याय को लागू करने के प्रयासों को झटका देने वाला बताते हुए इसकी कड़ी निंदा की जा रही है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपने इस फैसले के जरिए एक तरह से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को सरकारों के रहमों-करम पर छोड़ते हुए यह व्यवस्था दी है कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और न्यायालय द्वारा राज्य सरकारों को आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. बकौल जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता “इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है. ऐसा कोई मूल अधिकार नहीं है जिसके आधार पर कोई व्यक्ति पदोन्नति में आरक्षण का दावा कर सके. न्यायालय कोई परमादेश जारी नहीं कर सकता है, जिसमें राज्य को आरक्षण देने का निर्देश दिया गया हो.”

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